कारक ( Kaarak ) परिभाषा,भेद, उदाहरण
कारक शब्द का अर्थ होता है – क्रिया को करने वाला। जब क्रिया को करने में कोई न कोई अपनी भूमिका निभाता है उसे कारक कहते है।
अर्थात संज्ञा और सर्वनाम का क्रिया के साथ दूसरे शब्दों में संबंध बताने वाले निशानों को कारक कहते है
सीधे शब्दों में कहा जाएँ तो – वाक्य में प्रयुक्त वह शब्द जिससे पूरी घटना या उद्देश्य की पूर्ति हो , उसे कारक कहते हैं।
कारक के भेद (प्रकार)
कारक के मुख्यतः आठ भेद होते हैं :
1.कर्ता कारक
2. कर्म कारक
3. करण कारक
4. सम्प्रदान कारक
5. अपादान कारक
6. संबंध कारक
7. अधिकरण कारक
8. संबोधन कारक
कारक के भेदों की परिभाषा और उदाहरण
1.कर्ता कारक
जो वाक्य में कार्य को करता है, वह कर्ता कहलाता है। कर्ता वाक्य का वह रूप होता है जिसमे कार्य को करने वाले का पता चलता है।
कर्ता कारक की विभक्ति ने होती है। ने विभक्ति का प्रयोग भूतकाल की क्रिया में किया जाता है। कर्ता स्वतंत्र होता है। कर्ता कारक में ने विभक्ति का लोप भी होता है।
उदाहरण:-
- रामू ने अपने बच्चों को पीटा।
- समीर जयपुर जा रहा है।
- नरेश खाना खाता है।
- विकास ने एक सुन्दर पत्र लिखा।
कर्ता कारक के प्रकार :
कर्ता कारक के भी दो प्रकार होते है जो इस तरह है
1. परसर्ग सहित :
जब वाक्य में ने परसर्ग का प्रयोग होता है।
यह मुख्यतः भूतकाल के वाक्यों में होता है।
उदाहरण :
- रामू ने अपने बच्चों को पीटा।
- मेरे मित्र ने मेरी सहायता की।
- अध्यापक ने विद्यार्थियों को डांटा।
- विकास ने एक सुन्दर पत्र लिखा।
- सुरेश ने आम खाया।
2. परसर्ग रहित :
जब वाक्य में ने परसर्ग का प्रयोग नहीं होता है।
यह मुख्यतः वर्तमानकाल एवं भविष्यकाल में होता है।
उदाहरण :
- सुरेश उपन्यास पढता है।
- नरेश खाना खाता है।
- सूरज किताब पढता है।
- समीर जयपुर जा रहा है।
- सोनू कहानियाँ लिखता है।
2. कर्म कारक :
क्रिया के कार्य का फल जिस पर पड़ता है, वह कर्म कारक कहलाता है।
इसका विभक्ति-चिह्न ‘को’ है
यह चिह्न भी बहुत-से स्थानों पर नहीं लगता है लेकिन वहां कर्म कारक होता है
जैसे:-
1. सोहन ने साँप को मारा।
2. लड़की ने पत्र लिखा।
पहले वाक्य में ‘मारने’ की क्रिया का फल साँप पर पड़ा है। अतः साँप, कर्म कारक है। इसके साथ परसर्ग ‘को’ लगा है।
दूसरे वाक्य में ‘लिखने’ की क्रिया का फल पत्र पर पड़ा। अतः पत्र, कर्म है। इसमें कर्म कारक का हिंदी पर्याय ‘को’ नहीं लगा।
3. करण कारक
जिस साधन से क्रिया होती है उसे करण कारक कहते हैं। इसका विभक्ति चिन्ह से और के द्वारा होता है।
आसान शब्दों में –जिसकी सहायता से कोई कार्य किया जाता है उसे करण कारक कहते हैं। करण कारक का क्षेत्र बाकी कारकों से बड़ा होता है।
उदाहरण:-
जैसे- 1.अर्जुन ने जयद्रथ को बाण से मारा।
2.बालक गेंद से खेल रहे है।
पहले वाक्य में कर्ता अर्जुन ने मारने का कार्य ‘बाण’ से किया। अतः ‘बाण से’ करण पद है। दूसरे वाक्य में कर्ता बालक खेलने का कार्य ‘गेंद से’ कर रहे हैं। अतः ‘गेंद से’ करण पद है।
4. सम्प्रदान कारक
सम्प्रदान का अर्थ ‘देना’ होता है। जब वाक्य में किसी को कुछ दिया जाए या किसी के लिए कुछ किया जाए तो वहां पर सम्प्रदान कारक होता है।
आसान शब्दों में –जिसके लिए कोई कार्य किया जाए, उसे संप्रदान कारक कहते हैं
सम्प्रदान कारक के विभक्ति चिन्ह के लिए या को हैं।
कर्म कारक तथा सम्प्रदान कारक में अन्तर।
को कारक चिह्न का प्रयोग कर्म कारक तथा सम्प्रदान कारक दोनों में होता है यदि देने के अर्थ में को चिह्न लगा हो तो सम्प्रदान कारक होगा और देने के अर्थ को छोड़कर अन्य क्रियाओं के साथ को चिह्न जुड़ा हो तो वहाँ कर्म कारक होगा।
जैसे –
1.स्वास्थ्य के लिए सूर्य को नमस्कार करो।
2.हितेश गुरुजी को फल दो।
इन दो वाक्यों में ‘स्वास्थ्य के लिए’ और ‘गुरुजी को’ संप्रदान अवस्था में हैं।
5. अपादान कारक
जब संज्ञा या सर्वनाम के किसी रूप से किन्हीं दो वस्तुओं के अलग होने का बोध होता है, तब वहां अपादान कारक होता है।
अपादान कारक का भी विभक्ति चिन्ह से होता है।
से चिन्ह करण कारक का भी होता है लेकिन वहां इसका मतलब साधन से होता है।
यहाँ से का, किसी चीज़ से अलग होना दिखाने के लिए प्रयुक्त होता है।
उदाहरण:-
- पेड़ से आम गिरा।
- हाथ से छड़ी गिर गई।
- सुरेश शेर से डरता है।
- गंगा हिमालय से निकलती है।
6. संबंध कारक
जैसा की हमें कारक के नाम से ही पता चल रहा है कि यह किन्हीं वस्तुओं में संबंध बताता है।
संज्ञा या सर्वनाम का वह रूप जो हमें किन्हीं दो वस्तुओं के बीच संबंध का बोध कराता है, वह संबंध कारक कहलाता है।
आसान शब्दों में –शब्द के जिस रूप से एक का दूसरे से संबंध पता चले, उसे संबंध कारक कहते हैं।
सम्बन्ध कारक के विभक्ति चिन्ह का, के, की, ना, ने, नो, रा, रे, री आदि हैं।
उदाहरण:-
- यह राधेश्याम का बेटा है।
- यह कमला की गाय है।
- यह राहुल की किताब है।
इन दोनों वाक्यों में ‘राधेश्याम का बेटे’ से और ‘कमला का’ गाय से संबंध प्रकट हो रहा है। अतः यहाँ संबंध अवस्था में हैं। तीसरे वाक्य में ‘राहुल की’ संबंध अवस्था में है, क्योंकि यह राहुल का किताब से संबंध बता रहा है।
7. अधिकरण कारक
अधिकरण का अर्थ होता है – आधार या आश्रय।
संज्ञा के जिस रूप की वजह से क्रिया के आधार का बोध हो उसे अधिकरण कारक कहते हैं। भीतर , अंदर , ऊपर , बीच आदि शब्दों का प्रयोग इस कारक में किया जाता है।
आसान शब्दों में- शब्द के जिस रूप से क्रिया के आधार का बोध होता है उसे अधिकरण कहते हैं।
इसकी विभक्ति में और पर होती है।
उदाहरण:-
- भँवरा फूलों पर मँडरा रहा है।
- कमरे में टी.वी. रखा है।
- इन दोनों वाक्यों में ‘फूलों पर’ और ‘कमरे में’ अधिकरण कारक है।
8. संबोधन कारक
संज्ञा या सर्वनाम का वह रूप जिससे किसी को बुलाने, पुकारने या बोलने का बोध होता है, तो वह सम्बोधन कारक कहलाता है।
सम्बोधन कारक की पहचान करने के लिए ! यह चिन्ह लगाया जाता है।
सम्बोधन कारक के अरे, हे, अजी आदि विभक्ति चिन्ह होते हैं।
उदाहरण:-
- अरे भैया ! क्यों रो रहे हो ?
- हे गोपाल ! यहाँ आओ।
- इन वाक्यों में ‘अरे भैया’ और ‘हे गोपाल’ ! संबोधन कारक है। जिस शब्द से किसी को पुकारा या बुलाया जाए उसे सम्बोधन कारक कहते हैं।
इस तरह से कारक की परिभाषा उसके भेद (प्रकार) से सम्बन्धित यह पाठ समाप्त हुया,आपके सुझाव हमें कमेन्ट करके बताएं जिससे हम और भी व्याकरण सम्बन्धी जानकारी आप तक पहुंचाते रहें